Friday, 15 May 2015

मचलती कलम: दास्तान-ए-इश्क़

मचलती कलम: दास्तान-ए-इश्क़: यूँ क्यों हुआ के वे मुक़द्दर में चले आए.. फिर छोड़ चले और हम कब्र में चले आए.. कुछ धड़कनें छोड़ आया हूँ डायरी के भीतर.. किसी को कहना उन्...

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